सोमवार, अप्रैल 25, 2011

सांझ


दफ्तर से घर के रास्ते पर,

अक्सर मुलाकात हो जाया करती है,

कहती है जल्दी में हूँ,मिलती हूँ तुमसे,

जाने कितनी ही बार दिल चाहता है,


काश मुलाकात थोड़ी लम्बी हो जाए,

जाने क्या रिश्ता है मेरे और सांझ के,

साथ-साथ घर लौटने का |

मेरी तमन्ना


रोज सोचता हूँ अभी ज़िन्दा हूँ किन तमन्नाओं के लिए,
सोचते-सोचते अक्सर सो जाया करता हूँ,
खवाब में क्या देखता हूँ घर के सामने,
एक बड़ा सा पीपल  का पेड़ है,
और अपने को दरवाजे पर खड़ा,
चोटियों को ताकता पता हूँ,
और ख्वाब टूटने पर एक नन्हा पौधा पाता हूँ
जो तेज हवाओं के चलने से खिलखिला रहा है |