मैंने ऑटो वाले को ५ रुपये दिए और बिना अगल-बगल देखे स्टेशन की और कदम बढ़ा दिए उसने ४.०० को आने को कहा था,मैंने अपनी हाथ घड़ी देखी जिसे मैं केवल परीक्षा देने जाता तब ही पहनता था,और अपने भाई से क्रिकेट बेट के बदले सौदा किया था, आज न जाने ऐसा लग रहा है की आज पारुल ने उसे नहीं बुलाया होगा |

मैं पारुल और पराग बहुत अच्छे दोस्त थे लेकिन अब पारुल मेरी सिर्फ अच्छी दोस्त बन कर रह गयी जबकि पराग के काफी नजदीक पहुँच गयी ,कभी-कभी पराग अपने और पारुल के बारे में बताता है पर तब जब उसे मुझसे कुछ परामर्श लेना होता है या मीठी बातों में लम्बे समय तक डूबने के बाद उसका इन सब चीजो से मोह भंग होता हो जाता है तब |
अब पराग को मैं अब अच्छा नहीं लगता आजकल सब बदला-बदला सा लगता है ,नहीं बदली तो पारुल वो अभी भी कुछ नहीं समझती |
पारुल का घर भिलाई में है,और कॉलेज रायपुर में ,शाम ४.३० बजे की ट्रेन से घर वापस जाती है,और सुबह १० की ट्रेन से रायपुर पहुँचती है, मैंने कल ही कहा था कभी मिलने का प्लान बनाना बहुत दिनों से हम मिले नहीं हैं,और पारुल ने आज ही बुला लिया कहा की आज कॉलेज जल्दी खत्म हो जायेगा ,और कल से दीवाली की छुट्टियाँ लग जायेगी, पराग आ रहा है की नहीं उसके बारे में तो उसने नहीं कहा था,पहले कभी जब भी पारुल से हम मिलते तो पराग और मैं साथ ही जाते थे स्टेशन ,पर आज पहली बार मैं अकेले मिलने जा रहा था ,मैंने सोचा पराग मुझसे कांटेक्ट करेगा की चलना है ,जब उसने नहीं किया तो मैंने सोचा की हो सकता है पारुल ने मुझे अकेले बुलाया हो,और अगर पारुल कहेगी की पराग कहाँ है तो कह दूँगा की मैंने सोचा की तुमने उसे बताया होगा और मैं सीधे स्टेशन आ गया,पराग से कांटेक्ट करने का समय नहीं मिला |
खैर सीमेंट की बेजान कुर्सियों पर बैठे ४.१५ हो चुके थे मैंने एक बार रेलवे की घडी देखी फिर उसे अपने घडी से मिलान किया दोनों में ४.१५ हुए थे,,स्टेशन में भीड़ बढ़ने लगी थी,आस पास की कुर्सियां भी यात्रियों से भरने लगी थी,आज हो सकता है पारुल,पराग और उसके बीच में खटपट हो रही है उसके बारे में मुझे बताये इसलिए मुझे अकेले बुलाया हो और मैं तरह-तरह के हवाई महल बनाने लगता हूँ |
फिर लोग मेरे साथ वाले बेंच पर बैठने लगे थे, मन में क्रोध उमड़ा की कही और नहीं बैठ सकते | लोग जगह कम होने के कारण सट-सट कर बैठने लगे थे, बेंच पर लोगो के हलचल से मेरे सपने के खलल पड़ी ,मैं जो सोच रहा था बंद करके परेशान मुद्रा में उठ खड़ा हुआ और पारुल को देखने इधर-उधर नजर घुमाने लगा ,मेरे खड़े होते ही जो रिक्त स्थान बना था उस पर आस-पास के लोग फैल गए और रिक्त स्थान रिक्त नहीं रहा ,अब पास में जो महाशय खड़े हुए थे बेंच के एक कोने पर विराजमान हो गए,जिससे बेंच पर लोग मेरे खड़े होंने पर आराम से फ़ैल जाने पर जो संतुष्टी का भाव उत्पन्न हुआ था लोगो के चेहरे से जाता रहा |

अब तो हद ही हो गयी ४.२५ हो चुके हैं ,और कोई पता नहीं उसका ,अब पारुल के लिए मेरे मन में क्रोध उमड़ रहा था ,ट्रेन आने में ५ मिनट है ५ मिनट में क्या मिलूँगा उससे,फिर मैंने सोचा हो सकता है कॉलेज में कोई काम आ गया होगा ,खैर अब आएगी तो उसको अभी जाने नहीं दूँगा कहूँगा की ५.३० वाली ट्रेन से जाना |
४.२८ को भीड़ में पारुल का चेहरा दिखाई दिया ,वो जल्दबाजी में स्टेशन के अंदर आ रही थी ,थोड़ा सुकून मिला ,तभी उसके पीछे पराग आता हुआ दिखाई दिया ,अब मैं कुछ सोच सकने की हालत में नहीं था ,मेरे कानों में सुन्न करके एक आवाज़ बस आ रही थी ,भीड़ की आवाज़ ना जाने कहा खो गयी थी ,उन लोगों ने मुझे दूर से ही देख लिया,मैं उन लोगों को अपने ओर आते देख रहा था,याद नहीं की उस समय मेरा चेहरा कैसा लगा रहा था,तभी लोग एक ओर जल्दबाजी में चलने लगे एहसास हुआ की ट्रेन आ गयी ,अब वो लोग मेरे पास आ गए थे |
पारुल ने कहा मेरे वजह से काफी इंतज़ार करना पड़ा ना ,ये इसके चक्कर में तो है कहकर उसने पराग को अपने बैग से मारा ,इसको बोली थी ४ बजे स्टेशन में आना तो ये साहब कॉलेज कैन्टीन में ही पहुच गए ,और जल्दी चलने बोली तो बोलता है तेरे कॉलेज कैन्टीन में आया हूँ कुछ खिलाएगी नहीं क्या,एक प्लेट समोसा खाया फिर माना ये ,फिर मैं भागते-भागते आयी हूँ |
बोलते-बोलते ट्रेन के दरवाजे तक पहुँच गयी पारुल हमारे साथ फिर कहा और सुना कैसा है तू? उसने मुझसे पूछा मैं कुछ बोलते के लिए अपना मुंह ही खोला की ट्रेन का जोरदार हार्न बजा और पारुल ट्रेन में चढ़ी और ट्रेन चलने लगी ,फिर उसने कहा अब दीवाली के बाद मिलेंगे बाय, हैप्पी दीवाली |कुछ ही सेकंड्स में पारुल नजरों से ओझल हो गयी |
मैंने अपने हाथों में देखा कुरकुरे का पैकेट जो मैंने पारुल को पसंद है करके ख़रीदा था मेरे हाँथ में ही रह गया और मेरी असफलता की कहानी कह रहा था , मैं और पराग अपने पीछे की ओर बने बैंच पर एक-एक कोने पर बैठ गए ,ये हमारे कॉलेज के पीछे बना छोटा सा स्टेशन था,जहाँ ट्रेन जाने के बाद एक बार फिर सन्नाटा हो गया था ,ट्रेन से उतरे लोग पैदल कॉलेज के गेट तक पहुँच गए थे और अभी भी आँखों से ओझल नहीं हुए थे |
आज ऐसी स्थिति आ गयी थी हम दोनों अपने-अपने किये अपराध से वाकिफ थे और अलग-अलग दिशाओं में देख कर शायद ये सोच रहे थे की किसका अपराध ज्यादा बड़ा है कौन पहले सन्नाटा तोडेगा | हम दोनों काफी देर शांत बैठे रहे ,मैं भी सोच नहीं पा रहा था की क्या कहूँ ,शायद पराग को अपने और पारुल के बीच हो रहे गडबड को ठीक करने का यही सही वक्त लगा होगा और वो कुछ एकांत में बात करना चाहता होगा इसलिए वो अकेले पारुल के कॉलेज चला गया होगा,मुझे उन लोगों के बीच आ जाने पर आत्मग्लानी महसूस हुई और लगा इन सबसे दूर चला जाऊं,पर जाता तो जाता कहाँ ?
बिना बोले काफी देर बैठे रहे ,अचानक हाथ में कुरकुरे के पैकेट का अहसास हुआ,मैंने पैकेट खोल कर उसके तरफ बढ़ा दिया ,उसने कहा कब चलना है घर ,कॉलेज की छुट्टियाँ तो लग ही चुकी थी ,हम दोनों का घर एक ही शहर में था और घर गए काफी दिन हो चुके थे दोनों को, घर के नाम से हमारे बीच धीरे-धीरे तनाव के बादल छंटने लग गए और हम अपनी छुट्टियों की प्लानिंग करने में व्यस्त हो गए | स्टेशन में बात करते-करते काफी समय गुजर गया ,पिछली आँधी का नामोनिशान नहीं था ,माहौल खुशनुमा हो गया ,दिन के ढल जाने से ठंडकता का अहसास हुआ ,पंछियों के वापस घर आने की खुशी भरी चहचहाहटो से अन्य आवाजें दब गयीं और एक अजीब मानसिक शांति के अहसास के साथ मैं अपने कमरे में वापस लौटा अपनी किताबों पर से धूल हटाया और मेज पर किताबों के पन्ने उलटने लगा |
उस लम्हे को बुरा मत कहो ,जो आपको ठोकर पहुंचाता हो,
बल्कि उस लम्हे की क़द्र करो,क्योंकि वो आपको जीने का अंदाज़ सिखाता है |
बल्कि उस लम्हे की क़द्र करो,क्योंकि वो आपको जीने का अंदाज़ सिखाता है |
उस लम्हे को बुरा मत कहो ,जो आपको ठोकर पहुंचाता हो,
जवाब देंहटाएंबल्कि उस लम्हे की क़द्र करो,क्योंकि वो आपको जीने का अंदाज़ सिखाता है
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
अच्छी पंक्तिया सृजित की है आपने ........
भाषा का सवाल सत्ता के साथ बदलता है.अंग्रेज़ी के साथ सत्ता की मौजूदगी हमेशा से रही है. उसे सुनाई ही अंग्रेज़ी पड़ती है और सत्ता चलाने के लिए उसे ज़रुरत भी अंग्रेज़ी की ही पड़ती है,
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html
आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं....
जवाब देंहटाएं_____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है...
अच्छा लगा आपको पढ़ना। और भी अच्छा लगा कि आगे बढ़ते बढ़ते लय नहीं बिगड़ी कहानी की, अंत तक आते आते अर भी सुंदर बन गई है।
जवाब देंहटाएं"उस लम्हे को बुरा मत कहो ,जो आपको ठोकर पहुंचाता हो,
बल्कि उस लम्हे की क़द्र करो,क्योंकि वो आपको जीने का अंदाज़ सिखाता है |"
sahi hai bhai , sahi sahi likh raha hai , mujhe padne me bahut maja aaya sayad iska karan ye bhi ho ki main kirdar se vakhif hun........Good going keep it up
जवाब देंहटाएंLikhte rahe apne dil ki baaat isis tarah........meet you soon budy
sahi keha...har mod par sabak hai!
जवाब देंहटाएंश्रेष्ट विचारो के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है न कि धन की अधिकता के कारण
जवाब देंहटाएंbahut badhiya likha hai. subhkaamanaaye.
जवाब देंहटाएंसाकेत यूँ ही आपके ब्लॉग पे आ गयी थी .....
जवाब देंहटाएंजब आ ही गयी तो कहानी भी पढ़ डाली ....
इतनी कम उम्र में इतना बढ़िया लेखन .....?
भविष्य का आप एक उभरता कलाम हैं ....!!
आखिरी २ पंक्तियों में सारा सार समझा दिया आपने .बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति स्टेशन की आवाजाही के दृश्य बहुत जीवंत बन पड़े हैं.
जवाब देंहटाएंआप सभी को उत्साह बढाने का धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंAti Sunder
जवाब देंहटाएंकितना जिवंत लेखन है आपका सब कुछ सजीव प्रतीत होता है ....पाठक को बंधे रखना आता है आपको ..इसी तरह लिखते रहे ! शुभकामनाए
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
काव्य तरंग
nice one... aapki imagination power bohot acchi hai :)
जवाब देंहटाएंbete, aap achchha likte ho ! keep your pen up...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
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