नहीं जानता मेरी इन पंक्तियों को कविता कहते हैं या नहीं..बस दिल करता है और कागज़ पर उतार देता हूँ भावनाओं को..
किताबें..
वो पुल..
वक़्त..
Golden time
कडवाहट..
विस्की..
इस दिल का क्या-करूँ..
उफ़ उनकी ये बेपरवाह नजरें..
वही चार लोग..कहने वाले...
ये कैसी क्यों है..
चुभन..
तुम हो पास मेरे
मरीचिका
एक कप काफ़ी..
तुम क्यों नहीं आते
रेतघड़ी
ठूंठ
ख़ामोशी
सांझ
मेरी तमन्ना
किताबें..
वो पुल..
वक़्त..
Golden time
कडवाहट..
विस्की..
इस दिल का क्या-करूँ..
उफ़ उनकी ये बेपरवाह नजरें..
वही चार लोग..कहने वाले...
ये कैसी क्यों है..
चुभन..
तुम हो पास मेरे
मरीचिका
एक कप काफ़ी..
तुम क्यों नहीं आते
रेतघड़ी
ठूंठ
ख़ामोशी
सांझ
मेरी तमन्ना