जैसे वो गुजरे ज़माने की बातें थी,
किस्से कहानियो और किताबों की दुनिया,
वो बगीचों की शामे,
फिर वो खुली आँखों की नींद,
छतों पर बहाने बना कर टहलना,
बड़े-बड़े सपने देखना फिर थक के सो जाना,
दोष वक्त का नहीं,
दोष उनका है जिन पर,
निकम्मों को काम पर लगाने का ठेका है |