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जो भी है मन में..हाँ जो भी है मन में कह दो..

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ये हैं मेरी कहानी





ये कम्बक्त मन..
बारिश, रात और बस का सफ़र
..मुत्थु...
कुछ बातें तीसरे साल की..
और मै अक्सर ५ रुपये फिर दे कर आ जाता हूँ..
क्या कहूँ..
जब गांधीजी ने मार खिलवा ही दिया था..
जाने क्यों बदल गया मैं..
किस पर विश्वास किया जाए..
एक दिन देर से ही सहीं..
एक मुलाकात ऐसी भी..
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जिस हद तक तुम इस दुनिया में उलझे हो, उस हद तक तुम उसे खो देते हो। कलाकार दुनिया को छोड़ता है, ताकि उसे अपने कृतित्व में पा सके। तुम यथार्थ को अपने पास रखकर उसका सृजन नहीं कर सकते। तुम्हें उसके लिए मरना होगा, ताकि वह तुम्हारे लिए जीवित हो सके।

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