आज सुबह रुमाल देख कर फिर तुम्हारी याद हो आई,
भुला करते थे कभी रुमाल जानबूचकर,
पर अब याद आने से डरते हैं,
वो दिन था हम सुन कर भी अनसुना कर गए थे,
लगा था पलटकर जवाब देंगे कभी,
सोचा नहीं था कभी दीदार को तरसेंगे,
ऐसा नहीं था, की चाहते नहीं थे हम भी,
पर ज़माने की खातिर खामोश रह गए जुबाँ से |
aisi yaadein sardi k mausam me aur bhi pyaari lagti hain :):)
जवाब देंहटाएंVery nice
thankyou aparajita..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
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