आज सुबह रुमाल देख कर फिर तुम्हारी याद हो आई,
भुला करते थे कभी रुमाल जानबूचकर,
पर अब याद आने से डरते हैं,
वो दिन था हम सुन कर भी अनसुना कर गए थे,
लगा था पलटकर जवाब देंगे कभी,
सोचा नहीं था कभी दीदार को तरसेंगे,
ऐसा नहीं था, की चाहते नहीं थे हम भी,
पर ज़माने की खातिर खामोश रह गए जुबाँ से |