मंगलवार, जून 12, 2012

वही चार लोग..कहने वाले...


















जैसे वो गुजरे ज़माने की बातें थी,
किस्से कहानियो और किताबों की दुनिया,
वो बगीचों की शामे,
फिर वो खुली आँखों की नींद,
छतों पर बहाने बना कर टहलना,
बड़े-बड़े सपने देखना फिर थक के सो जाना,
दोष वक्त का नहीं,
दोष उनका है जिन पर,
निकम्मों को काम पर लगाने का ठेका है |

4 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी अपनी सोच है ... पता नहीं किसका दोष है ...

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  2. वाह ... बेहतरीन
    कल 20/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    बहुत मुश्किल सा दौर है ये

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  3. मजेदार निकम्मों को ठिकाने लगाना. वक्त वक्त का फेर है.

    जवाब देंहटाएं

मेरे ब्लॉग पर आ कर अपना बहुमूल्य समय देने का बहुत बहुत धन्यवाद ..