बेमन से बुकिंग एजेंट
को फ़ोन कर टिकट करवाया, हमेशा की तरह गलत समय पर बारिश भी थम गयी, घर से निकलते
वक़्त सावधानी से सम्बंधित सारे पाठ अच्छे से याद दिला दिए गए, हाँ-हूँ करते हुए मन
में ख्याल आ रहा था की ऐसा कुछ हो जाए की बस में बहुत भीड़ हो और सीट न मिले या बस वाले
आज किराया बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल में बैठे हों, पर समय पर बस यात्रियों का इंतजार
करते स्टैंड पर मिली, बारिश की वजह से बस में भी वीरानी दिखी और उनका हड़ताल करने
का कोई इरादा भी नहीं दिखा, अधिकांश सीटें खाली थी, मनमाफिक खिडकी वाली सीट पर
कब्ज़ा जमाया, ४०० किलोमीटर के रात सफ़र में खिड़की और हेड-फ़ोन ही मेरे दोस्त थे, टिकट
के पैसे चुकाए और कान में हेड-फ़ोन ठूस कर आँख मूंद लिया, बस में नींद से मेरा कोई
वास्ता ना था, बस में कम्पन से ही अंदाजा लगा लिया की बस की रफ़्तार बढ़ गयी है और
अब शहर से बाहर निकल चुकी है |
कुछ घंटे बाद बस
की घरघराट से कम्पन हुआ और बस के रुकने का अंदाजा हुआ, आँख खोल के देखा तो बस के
ड्राईवर और कंडक्टर बस से लगभग उतर चुके थे, बाहर हल्की बारिश हो रही थी, थोडा और
खिड़की से देखने की कोशिश की तो ढाबे का बोर्ड दिखाई दिया, पर वो ढाबे का छोटा
बच्चा नजर नहीं आया जो हर बार बस के पहूँचने पर बस के चारो ओर घूम-घूम कर बस को
पीट-पीट कर लोगो को आवाज़ देता था “खाना नास्ता चाय कोल्ड्रिंक वाले उतरो भाई”,
शायद कंडक्टर को भी बस से नीचे उतर कर उस
बच्चे की कमी का अहसास हुआ, फिर कंडक्टर बस के दरवाजे से सर अन्दर डालकर जोरो से आवाज
लगाया “बस आधे घंटे रुकेगी जिसको खाना है खा लो भाई ” उसकी आवाज से बस में थोड़ी
हलचल हुई शायद नींद में सोये हुए लोगो को उसकी आवाज अच्छी नहीं लगी, गहरी नींद में
सोये हुए लोग करवट बदल कर सोने लगे और जो थोड़े जागे हुए थे वो बर्थ से सिर्फ सर बहार
निकाल कर एक नजर देखा और फिर अपनी मांद में सोने लगे, २-४ लोग जो कम दुरी की यात्रा
कर रहे थे और अपनी मंजिल के इंतजार में जागे हुए थे वो धीरे से उतर कर ढाबे की ओर
चले गए, मैंने घडी को देखा तो मिनट और घंटे के कांटे १२ नंबर को छूने रेस कर रहे
थे, बिलकुल मेरी और पराग की तरह, पर फ़तेह तो किसी और की थी |
मैं भी समय पास करने के मकसद से बस से
उतरा, ढाबे में सिर्फ गिने चुने लोग ही नजर आ रहे थे उनमे भी ढाबे के स्टाफ ही
ज्यादा रहे होंगे | बारिश अभी रुकी नहीं थी, मैं भी उतर कर सीधे ढाबे के सामने पहुँच
गया, एक व्यक्ति चाय बना रहा था उसी के इर्द-गिर्द कुछ लोग जमा हुए थे, मैं भी
वहां खड़ा हो गया, बारिश की वजह से हल्की ठण्ड सी हो गयी थी, चूल्हे का तपिश अच्छा
अहसास दे रही थी, शायद कुछ लोगों की वहां पर होने की वजह भी वही रही होगी, चाय
वाला अपने पास कुछ लोगो को देख खुश लग रहा था, वह चाय को एक पात्र से उड़ेल कर हवा
में ही दुसरे पात्र में उड़ेलता, थोड़ी देर दुसरे पात्र को चूल्हे में रख कर फिर
दुसरे पात्र से पहले में उड़ेल कर चूल्हे पर रख देता, उसका यह करने का मकसद चाय
बनाने से ज्यादा करतब दिखा कर लोगो को आकर्षित कर अपने चाय का प्रचार करना लग रहा
था, चाय जब एक पात्र से निकलती होगी और हवा में तैरती होगी तो उसे आजादी लगती होगी
और लगता होगा की अब चूल्हे के तपिश से राहत मिल गयी, पर उसे अब जाना दुसरे पात्र
में होता है, और फिर तपिश सहनी पड़ती है, और फिर एक बार कुछ समय बाद हवा में आने पर
उम्मीद जागती है और फिर उम्मीद टूटती होगी, और अन्न्ततः उसे समझ आ जाता होगा की
सुख सिर्फ मरीचिका है दुखों का कोई अंत नहीं और ठीक मनुष्यों की तरह वो अपने मन को
भ्रम में रखता होगा की सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है |
पारुल को गए एक साल से
ज्यादा हो चुके थे, पर मैं आज भी इस बात को पचा नहीं पा रहा था की अब वो किसी और
की है और अपनी दुनिया में खुश है, शुरू में तो मुझे लगा पारुल की खुशी में ही मेरी
खुशी है, पर शायद ये मन को भ्रम में रखनी वाली बात थी |
5 रूपए चिल्लर नहीं है क्या चाय वाले ने नाराजगी से
चाय लेते एक मुसाफिर को कहा, उसकी नाराजगी चिल्हर न होने से ज्यादा उसके चाय कम
बिकने पर थी, शायद पास खड़ा देख उसकी मुझसे भी चाय लेने उम्मीद थी, भीगने लायक
बारिश न होते देख मै रोड की ओर निकल गया और रोड से कुछ दुरी बना कर खड़ा हो गया और
सड़क पर आती जाती गाडिओं को देखता रहा, बारिश इतनी हलकी हो रही थी की काफी अंतराल में
ही चेहरे पर बुँदे आ रही थी जो बारिश न होने का भ्रम तोड़ रही थी | गहरा
सन्नाटा पसरा हुआ था बस बीच-बीच में कहीं दूर से कुत्ते के भोंकने की आवाज आ जाती
थी, रोड पर भी गाड़ियाँ बहुत ज्यादा अंतराल में आ-जा रही थी, उनकी आने की आवाज और
रौशनी से काफी दूर से ही समझ आ जाता की कोई गाड़ी आने वाली है और जाने के भी कुछ
देर बाद तक उनकी आवाज़ सुनाई देती रहती | कम ट्रेफिक और बारिश की रात होने की वजह
से गाड़ियाँ काफी स्पीड से आ-जा रही थी, जब कोई गाड़ी गुजरती सड़क पर खाली पड़े पानी बोतल
को काफी कुछ दूर उड़ा ले जाती थी, अब बोतल को देखना मेरा टाइम-पास बन चुका था, पहले
तो मै ये देखने लगा की कब बोतल गाड़ी के पहियों को नीचे आता है, पर ये बोतल के
पहियों के नीचे आने का खेल नहीं था |
शायद बोतल किसी दिशा
में यात्रा करके अपनी मंजिल तक पहूँचना चाहता था, एक दिशा से गाड़ी आती उसके जाने
के हवा से वह काफी दूर तक खीचा चला जाता पर जब दूसरी दिशा से गाड़ी आती उसे फिर हवा
उड़ाकर उसे उसके पहले वाले जगह ढाबे के सामने रोड पर पंहुचा देती, कभी दो गाडियों
के लगातार एक ही दिशा में आने पर वह ढाबे से दूर निकल जाता पर, कुछ समय बाद उसकी
नियति उसे फिर ढाबे के सामने वाली सड़क पर पंहुचा देती, ठीक मेरी तरह |
बस के स्टार्ट
होने की आवाज़ ने मेरी बेहोशी ख़त्म की, और मै अपनी सीट पर जाकर बैठ गया, बस ने एक-दो
बार हॉर्न दिया, फिर कंडक्टर ने बस से उतरकर किसी को आवाज़ दी जो मैं हैडफ़ोन के
कारण सुन नहीं पाया, और दिन दुनिया से बेखबर होते हुए फिर आँखे मूंद लेता हूँ, सीट
पर हुई हलचल पर आँखे खोलता हूँ तो पाता
हूँ एक बुजुर्ग व्यक्ति मेरे बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया है, जो अभी तक के सफ़र
में जो खाली थी, फिर बस चल पड़ती है | मैं झुन्झुलाहट से आगे पीछे देखता हूँ, की ये
कहाँ से टपक पड़े, बुजुर्ग अपने को सीट पर ज़माने में ही व्यस्त रहे और मेरी
झुन्झुलाहट नहीं देख पाए, मैंने गौर किया उनकी ओर तो देखा उनकी उम्र ८० से ८५ रही
होगी, मोटा चश्मा, दांतों वाले जगह पर गाल धंसा हुआ, मटमैला धोती और नील के धब्बों
वाला सफ़ेद कुर्ता पहने हुए, हाथों में वही बुजुर्गों वाली छड़ी जिसका मुड़ा वाला
सिरा अपना रंग खो चुका था, अपने बड़े से बैग को सीट के नीचे छुपाने के प्रयास में
लगे हुए थे, अपनी झुन्झुलाहट व्यर्थ जाते देख मैं फिर आँखे मूंद लेता हूँ, कुछ देर
सीट पर और हलचल होती है फिर बंद हो जाती है, और जूते में कोई चीज के स्पर्श का
एहसास समझा देता है की बुजुर्ग का बैग सीट के नीचे डालने का प्रयास असफल हो चुका
है और बैग पैर के पास रख कर संतोष करना पड़ रहा है |
मेरा मन बड़ा ही
विचलित था कभी मैं पारुल के बारे में सोचता की कैसी होगी, कभी मैं रात के लम्बे
सफ़र में संघर्ष करते वृद्ध के बारे में सोचता, क्या होगा इस वृद्ध के मन में जो
इसे इस उम्र में बारिश की रात इतना लम्बा सफ़र करने की प्रेरणा देता होगा, क्या अभी
भी पारुल को मेरी शक्ल याद होगी, बोतल अभी पहियों के नीचे आया होगा या नहीं, ढाबे
पर अभी दूसरी बस खड़ी होगी, चाय को फिर तपिश सहनी पड़ी होगी, एक बस के बाद दूसरी बस,
फिर तीसरी,फिर चौथी, ओह दुखों का कोई अंत नहीं, कल सुबह फिर से बैंक जाना
पड़ेगा, अब मै गाने पर ध्यान देने लगता हूँ, इससे थोड़ी राहत मिलती है पहले एक गाना,
फिर दूसरा, फिर तीसरा...ना जाने कितनी ही देर तक सुनता रहता हूँ |
कुछ समय बाद आँखे
खोलकर देखता हूँ तो बस के दुसरे तरफ वाली सीट पर कोई लड़की बैठी हुई है, उसका चेहरा
अँधेरे में ठीक से दिखाई नहीं पड़ रहा था, उसके साथ कोई पुरुष था, शायद उसका पति हो, तभी बस
किसी शहर में प्रवेश करती है और स्ट्रीट लाइट की रौशनी उसके चेहरे पर पड़ती है,
उसका चेहरा मुझे पारुल सा दिखाई पड़ता है, आँखों पर विश्वास नहीं होता, मै फिर किसी
स्ट्रीट लाइट के आने का इंतजार करता हूँ, हर एक स्ट्रीट लाइट की रौशनी से पारुल का
खुबसूरत चेहरा आँखों में छपता जाता है, पर उसके चेहरे पर ख़ुशी देखकर उसके पारुल
होने पर फिर शक होता है, मेरी कल्पना में तो जो शादी के बाद वाली पारुल थी वो इतनी
खुश नहीं थी, पैर बर्फ से भी ठन्डे लगने लगते हैं |
कॉलेज के आखिरी
साल में ही पारुल के घर वालों ने उसे कह दिया था की अगले साल तुम्हारी शादी कर दी
जाएगी, पारुल को यह कतई स्वीकार नहीं था पर घर वालों के सामने उसकी एक ना चली, कई
बार मैंने पारुल के इस दर्द को महसूस किया था, जब भी स्त्रियों की स्वतंत्रता की
बात आती पारुल का चेहरा देखने लायक होता, कितने जोश में वो सेल्फ डिपेंडेंट की
बातें कहती, पुरुष-स्त्रियों की समानता की बातें करती, और मैं इस दौरान सिर्फ
पारुल को देखता रहता, उसकी बातें ख़त्म होने के बाद उसके चेहरे की उदासी और कोई
नहीं पढ़ सकता था, सब उसकी तारीफ करते पर वो मुझसे सिर्फ इतना कहती बातों में जीतने
से क्या होता है, मै उसके वाक्य का मतलब अच्छी तरह समझता था |
मै बुजुर्ग व्यक्ति
को पार करके पारुल तक पहुँचने के लिए उठ खड़ा होता हूँ, फिर अचानक उसकी खुशी देखकर
हिचकिचाहट होती है और आभास होता अब कॉलेज वाला समय नहीं रहा, बस की गति अब कम होने
लगती है और कुछ देर बाद धीरे-धीरे करके थम जाती है, पारुल और उसके साथ वाला
व्यक्ति बस से उतरकर पैदल चलने लगतें हैं और मैं भी सोये हुए बुजुर्ग व्यक्ति को धीरे
से पार कर उनके पीछे बस से उतरकर किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पीछे चलने लगता
हूँ, कुछ दूर पैदल चलने के बाद बस के स्टार्ट होने की धीमी आवाज़ सुनाई देती है जिससे
बस से काफी दूर चले आने का अहसास होता है, कुछ सेकंड्स के लिए एक ही जगह पर जड़
होकर पारुल को एक बार फिर अपने से दूर जाता देखता हूँ, फिर पलट कर उलटी दिशा में तेज
क़दमों से बस में वापस आ जाता हूँ, बुजुर्ग व्यक्ति मेरे आने तक जाग चुका था, और
फिर से अपने बैग तो सीट के नीचे रखने के प्रयास में था, और मुझे आता देख अपनी
कोशिश छोड़ देता है, अपनी सीट पर बैठने के बाद न चाहते हुए भी मुंह से बडबडा जाता
हूँ “बस यहीं तक साथ था” बुजुर्ग व्यक्ति के कानों तक जर्जर आवाज पहुँचती है और कुछ
ना समझ पाने वाले भाव लिए वह हैरानी भरी निगाहों से मेरी और देखता है और मुझे कुछ
न कहता देख फिर अपनी आँखें मुंद लेता है और मैं भी |
अगली आँख सूरज
की नारंगी किरणों की वजह से खुलती है, और सबसे पहले मन में यही सवाल आता है मैं बस
में सो कैसे गया, बगल वाले बुजुर्ग नदारद दिखते हैं जिससे शंका होती है कहीं मै
स्वप्न तो नहीं देख रहा था, रास्ते में रोड के किनारे ग्रामीण मुसाफिर नजर आतें
हैं जो बस को देख उत्साहित और नए सफ़र की शुरुवात से खुश नजर आतें हैं ठीक मेरी तरह
|
इस बार बड़े करीब से गुजरे वो, फिर भी,
ना ही साथ चल सके, ना आवाज़ दे सके |
ख़्वाबों और यादों के बिना जिंदगी कहाँ.....
जवाब देंहटाएंअनु
सब माया है ...
जवाब देंहटाएंBahut achha laga padhna...aisahee hota hai jeewan me paas rahte hue bhee ham kisee ko aawaaz nahee de pate...
जवाब देंहटाएंये शायद रात भर का सपना था, वो शायद कुछ महीने या कुछ साल का।
जवाब देंहटाएंनई शुरुआत स्वागतयोग्य है।
good yar
जवाब देंहटाएंgood yar
जवाब देंहटाएंनरेश यादव :-
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है-
"क्या होगा इस वृद्ध के मन में जो इसे इस उम्र में बारिस में इतना लम्बा सफ़र करने की प्रेरणा देता होगा "
कभी कभी मेरे दिल में भी ये सवाल आता है ।
जैसे सभी कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा हो...
जवाब देंहटाएंवर्ष की सांध्यबेला पर सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
प्यार भरे पल यूँ ही जेहन से कब जाते हैं ..
जवाब देंहटाएंइसी का नाम प्यार है की सदा उसकी सलामती और खुशगवार जिंदगी की दुवा करते रहे .
..यादों में डूबी सुन्दर प्रस्तुति ..
can feel each and every word....:|
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
sandar.., sub sachi h., mene bhi ese hi mahashus kiya h
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